है क्या यह दुनिया
जीने को क्यों फर्माया
आने से पहला अन्जान्
जाने के बाद तो महान्
जीने मे मरते रहने की फर्ज
मरने मे जीने कि कर्ज
जिंदगी उसीकी है जिसे
न फर्माने से ही सब मिले
न चाहते ही किस्मत खुले
है क्या यह जिंदगी
करें काम् दिन् रात
बुरी पेट कि बरबात
हर कमीने भोंकते रहे
हर गुजारे फिसलते रहे
ये बेवफा अनाडीयों से
ये बे फिक्र खिलाड़ियों से
बच के रहना हट के जीना
यही है क्या यह जिंदगी?
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