डरपोक नहिं
कसम से कहता हूँ किहर कमीने प़ूंंछ हिलाते
जब एक कदम पीछे हटें
हर कुत्ता भोंकने लगे
अगर जान पूछ के चुप रहें
ये दुनिया वफादारी नहिं
बेवकूफों के अंगना है
जितना भी अछ्चे पायें
सुबह तक सबकुछ भूल जाएंं
बार बार कितने बार याद दिलादें
प्राप्त हुवा सहाय कभी न भूलें
मिला हुआ मदद बहुत मेहंग ही मानें
वक्त आनेपर दिल खोल कर देखें
कितने लोग हमे प्यार कियें
कितना रुण ग्रस्त रह जायें
मालूम होगा महनत का किमत कितना
मालूम होगा हरदिन का प्रयास जितना
उमर से हो या डर से हो
कयी बार चुप रहतें
सबके अच्छाई केलिए
मगर वह डरपोक नहीं
मान्यता का प्रतीक रहें।
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