Tuesday, June 19, 2018

डरपोक नहिं

कसम से कहता हूँ कि
हर कमीने प़ूंंछ हिलाते
जब एक कदम पीछे हटें
हर कुत्ता भोंकने लगे
अगर जान पूछ के चुप रहें
ये दुनिया वफादारी नहिं
बेवकूफों के अंगना है
जितना भी अछ्चे पायें
सुबह तक सबकुछ भूल जाएंं
बार बार कितने बार याद दिलादें
प्राप्त हुवा सहाय कभी न भूलें
मिला हुआ मदद बहुत मेहंग ही मानें
वक्त आनेपर दिल खोल कर देखें
कितने लोग हमे प्यार कियें
कितना रुण ग्रस्त रह जायें
मालूम होगा महनत का किमत कितना
मालूम होगा हरदिन का प्रयास जितना
उमर से हो या डर से हो
कयी बार चुप रहतें
सबके अच्छाई केलिए
मगर वह डरपोक नहीं
मान्यता का प्रतीक रहें।

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