Sunday, November 11, 2018

     निवेदन

मालूम् है किसको ये दुनिया
हर दंदा पर लूट मारे बनिया
आम आदमी कैसे गुजारे
शामना करते सवाल हजारे
महंगा है जीना न तो मरना
महंगा है जीवन गाडी चलाना
पैसे के पीछे दौढता जनता
स्वार्थ के प्रयास पर चमकता
स्वयं लाभ के शामने कमीने
रिस्त तोढकर भागता अभाग्य
श्वशुर के रूप मे नर रूप असुर्
पेट भरके दारू पीके हर हुजूर
हाथ जोढ के हे भगवान्!
समर्पित करता हूं ये निवेदन
हर प्राणि अपनी हिसाब से जीना
मुश्कराते हर शाम को घर पहुंचना
एक दूसरे पर जुलुम न चलाना.

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