निवेदन
मालूम् है किसको ये दुनियाहर दंदा पर लूट मारे बनिया
आम आदमी कैसे गुजारे
शामना करते सवाल हजारे
महंगा है जीना न तो मरना
महंगा है जीवन गाडी चलाना
पैसे के पीछे दौढता जनता
स्वार्थ के प्रयास पर चमकता
स्वयं लाभ के शामने कमीने
रिस्त तोढकर भागता अभाग्य
श्वशुर के रूप मे नर रूप असुर्
पेट भरके दारू पीके हर हुजूर
हाथ जोढ के हे भगवान्!
समर्पित करता हूं ये निवेदन
हर प्राणि अपनी हिसाब से जीना
मुश्कराते हर शाम को घर पहुंचना
एक दूसरे पर जुलुम न चलाना.
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home